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Showing posts from 2019

Vision

           VISION I don't want to see the future If I had a power though. What happen when I'll show myself A sad creature Like no power to stop the error/arrow who skipped from the bow. If I'll not able to cure those fractures Then how I could live with that law. So I am happy with today's nature Here I can make my future everyday you know. Thought, moments, Breath & love; we have all the feature And those are enough for a shiny aim to grow. human! Only kin for car, gold and money to capture But there calculation of success is away from life's math and bio. In this play sometime thinks, Am I using right guesture dedication, determine and work hard or should I let myself with the universe Flow. The time is doing very bad, said but have faith on the Watcher All those reason Makes a Vision and it turns into my good fellow. I just asked a power of Amour propre(self love) Cause that my vision and that will my anthem; Amour propre-Amour propre. Till then I am not ten

दास्तान ए सफर "जिंदगी"2

जीवन की इस लहर में जीवन थोड़ा रुक सा गया है। तना हुआ सीना और जो गर्व था, वो सर अब झुक सा गया है। वो बीते पलों की ठंडक और अब हर एक पल की जलन; दोनों गरमा रही है। तब कोई मुश्किल आते देख मुस्कुराते थे और अब हर एक मुस्कान वो, मुरझा रही है। परंतु इस उथल-पुथल में भी अजब सा सन्नाटा है। हालातों की इस मधुर हाला को लांघु कैसे, ये समझ ना आता है। मेरी भाव-लता से रिसते आंसू को अब, बारिश भी ना छुपा पाएगी। क्रूरता की बेड़ियां तोड़ लगता है मुझे आलिंगन करने, विपदा भी खुद को छुटा ले आएंगी। आखिर इतना सह गया हूं, जिसकी गिनती कोई कर नहीं सकता। क्योंकि टूट चुका हूं इतना कि, अब और गिरने को डर नहीं लगता। जीवन की इस लहर में हां! जीवन थोड़ा रुक सा गया है। तना हुआ सीना और जो गर्व था, वो सर झुक सा गया है। लेकिन कुछ तो है इस समतल में, जहां से मैंने शुरुआत की थी। आसमां अभी भी उतना ही रोचक लगे, देख जिसे मेरे पहले सपने ने उड़ान भरी थी। पिछले प्रयासों ने तो अनुभव सिखा दिए हैं कई; तो चढूंगा जोश से दुगने और अब ऊंचाई का भय है नहीं। तब तो ऊंचाइयों को बस देखने की ललक थी। लेकिन अब छूने नहीं, अब तो आसमां को बस छेदने की सनक ही

अग्निपथ... अग्निपथ... अग्निपथ

अग्निपथ... अग्निपथ... अग्निपथ कल रात को ये सोच रहा था मैं; के आखिर कैसा ये भ्रम हैं। हर बात को ऐसे निचोड रहा था मैं; के जीते-मरते सभी, पर नित्य वैसा ही क्रम है।। रोज ये धरती गोल घुमती, सुर्य भी वैसा ही गरम है; बस चिंता मे था कि इस सब में मेरा क्या वजुद है। टूटे सपने मेरे, टूटे अपने मेरे, गैरों का हंसना कैसा ये धरम है; बस देख रहा था वहां ऊपर के कोई जोडने को टूटा अरमां मेरा क्या मौजूद है।। इस भ्रम की लड़ाई में चाहतों का किला मेरा क्या नेस्तनाबूद है; शायद हार का अंदेशा मेरी आंखो से गीरी बुंद से ही है। तभी तो सन्नाटा इतना गहरा छाया और पुछ रहा हरदमके अब भी दिल मेरा क्या मजबूत है; असल में लड़ाई तो मेरी हां! खुद से ही हैं।। खोया प्यार, दूर होए यार, फिर भी जुड़ा हूँ उनसे, जरूर एक दिन मिलुंगा, ये मैं जानता हुॅ; होगा कठिन हल इस भ्रम का शायद पर मैं अब गणितज्ञ नहीं, ये मस्तमोला अब साहित्य पढता हैं । पढा है पिछली सदियों के लिजेंडस के बारे मे, वो क्या लडे थे, ना जीए थे, जीवन, जिसको भ्रम मैं मानता हुॅ; गणित के शिक्षक कहते थे, हल मत ढुंढो, समस्या को समझो... और पिछली सदी के महानुभवों को पढा है और आइना

आहा! एक लम्हा

वो अजनबी

विद्यासार

विद्यासार क्या होता है विद्या का सार सिर्फ होता है क्या चाटना किताबें हजार क्या एक महिने या साल में प्राप्त कर सकते हैं इसे; कितनी गहराई कितनी चौडाई कितना है इसका प्रसार। शायद होगा ये किसी मानव दिमाग को पढना या स्वयं के विचारो अनुभवों को गढना क्या ये नहीं हो सकता किसी देश की संस्कृति; वरना ये होगा जरूर सफलता की प्रत्येक सिडी पर चढना। कोई कहता कि ये बराबर है माता-पिता के प्रेम जितना कहता कोई रहस्यमयी है आसमां हैं जितना कोई कहता पूरे जीवन का लेखा जोखा है; ओर कोई बताता इसे ब्रह़मांड हो छोटा जितना। असमंझस मे मैं बेचारा सोचता हूॅ बार बार सभी धर्मों को सुनना अच्छा बोलना मानव कल्याणकारी कर दे संसार हमेषा ज्ञान ग्रहण करते रहना, व्रद्धों व प्रकृती की सेवा करना; बच्चों को देना अच्छे संस्कार। अरे! हा! असल मे यही तो है सम्पूर्ण विद्या का सार।।

मेरा मन

मेरा मन क्यों आज मेरा मन हो रहा है विचलित ? क्याॅ ह्रदय जा रहा है कहीं होकर द्रवित ? क्याॅ करू मन में है बड़ी घोर असमंझस ? क्या सिर्फ मेरे साथ ही घटित हो रहा है यह मंझर ? बस! कुछ कह नहीं सकता मन में प्रस्फुटित प्रश्नों के उत्तर में। बस! सोचता हूॅ कैसे पार करू बाधाओं को, अटकलों या सूत्र में। मैं पथिक तो चल रहा था इस मोहमाया में गुजर के। कहीं इसके छिंटे मुझ पर ना गिरे, यही सोच-विचार के। तभी मस्तक में आया एक अन्य विचार... क्यों आज मेरा मन... क्याॅ ह्रदय जा रहा है कहीं होकर द्रवित ?

व्यथा

व्यथा उस दिन मैं था एक घोर चिंता में। एक बड़ी सी उलझन में, एक धर्मसंकट में। खड़ा था एक छोर पर मैं पानी लिए आॅखों में। ना आया समझ के कैसे व्यक्त करू बातों में। कुछ ना था उस वक्त मेरे आंचल में। बस निराष ही थी दिख रही क्षेतिज तल में। सुनहरी सफलता की तरस थी आॅखों में। ह्रदय में भी तड़प थी खोने को उसकी बातों में। क्या मैं चख पाउंगा वो जीत अपने जीवन में। मेरा प्रेम होगा बीरहा की रुत या होगा वो सावन में। क्या चुनना पड़ेगा कभी एक को, इन दोनों में। क्या होगा फिर विकल्प मेरा उन क्षणों में। फिर एक के साथ होगी जिंदगी, उस एक की कमी में। फिर कैसे जी पाउंगा मैं, हाय! गालों की उस नमीं में।

चंचलता

चंचलता मैं हुॅ ख़ामोश; पर मेरा ह्रदय बोल रहा। दुनियाॅ है ये स्थिर; पर मेरा मन डोल रहा। कुछ सोचता जो; वो मैं नहीं हूॅ कर रहा। रास्ते पर पथरिलें; हूॅ मैं क्यों गिर रहा। खुरदरापन ये षायद; जीवन में मैं स्वयं ही चुन रहा। नुकिलें किनारों पर तभी तो; स्वपनों को मैं चला रहा। समझता तो हूॅ ही; नादान तो नहीं मैं अब रहा। फिर नाजाने क्यों यूहीं; व्यर्थ भटक मैं तब रहा। उफ!उफ!उफ! चकरा गया दिमाग; जब बारे में स्वयं के हूॅ मैं सोच रहा। हूॅ मैं समझदार या फिर; पूर्वजन्म में मुर्खों पर हो मेरा राज रहा। सोचता हूॅ मैं; भूतकाल भयावता है, भविश्य भरमा रहा। हे! ईष्वर! क्यों न तब; मैं वर्तमान में हो खुष लहरा रहा। अरे! मैं हूॅ ख़ामोश;मेरा मन बोल रहा। दुनियाॅ है ये स्थिर; पर मेरा ह्रदय डोल रहा।

दास्तन-ए-सफर ‘’ज़िंदगी‘‘

दास्तन-ए-सफर ‘’ज़िंदगी‘‘ ये दर्द भरी आंखे जो मेरी झुकी सी है। बाजुए भी ये ना जाने क्यों मेरी आज थकी सी है। ह्रदय भी मेरा स्पन्दन कर रहा रूक-रूक कर; ये जवानी की लहरे भी तो अब रूकी-रूकी सी हैं।। समय मेरा चल रहा कठिन मैं सोचता हूॅ। देखेंगे इसे भी जोष से कभी-कभी मैं हुंकारता हूॅ। कंहा की मेने गड़बड़, कंहा मे चूक गया, पता है मुझे; फिर भी मैं रोदन करता, बहाने बनाता के सपने टूटे मेरे क्यों; नहीं मैं जानता हूॅ।। आज हार सा गया मैं जिंदगी की इस कषमकष में। सोचता हूॅ, ना जाने क्यों फंस गया मैं इस सरकष में। उतार-चढाव, सुःख-दुःख तो बस अठखेलियाॅ है जीवन की, पता है मुझे; पर इन विचारों को षांत कर सकूं, वो महात्मा नहीं, मैं वो आम हूॅ, जो खिंचता है खुद को हर रोज इस तरकष में।। मज़ेदार है यह जीवन भी, कभी हंसाता है कभी रुलाता। जिस क्षण टुटा वह, था षोकमनाता, उसी को आज पक्की नींव सफलता की बतलाता। जिससे वह डरता हो, सोचते ही कंपन करता हो, कल उन घावों को हंसकर ही दिखयेगा, पता है मुझे; खुषनुमा उन बिती बातों को याद कर मुस्कराता, अद्भूत है क्यों वह आंखों में फिर आंसु लाता।। हाहाहा...गजब है ना यह जीवन! दर्द भरी आंखे मेर

बात नईं

बात नई आज लिखने बैठा हूॅ, कविता एक नई। फिर भी बाते सामने आ जाती है पुरानी वहीं। आज करना था कुछ नूतन, कुछ अच्छा; परन्तु निकल नही पाता मन की उधेड़बून से कहीं।। सोचता हूॅ कुछ नवीन, कुछ सृजन, कुछ रोचक; लेकिन चकित हुआॅ, होकर दुःखी ईरादों पर अपने उन्हीं।। उड़ना चाहता था गगन से उपर अनंत में; किंतु गिर पड़ा अथाह खाईओं में मन की किन्हीं। कुछ ढुंढ़ा मन बहलाने को खिलोना प्रेम का; पता चला तो रोका मेरी भावना ने, के दूसरा नहीं।। अबकी बार करेंगे श्रम खुब, दिल और लगन से; सोकर उठा, फिर भी मन में आएॅ फालतु सपने यूहीं।। आज लिखने बैठा हूॅ, कविता एक नई...

मेरे विचार

मेरे विचार सोचता हुॅ मैं एक साथ विचारों की एक कड़ी। उस प्रत्येक क्षण में बिखर कर पुनः बन जाती है एक लड़ी।। बहुतायत में भरे पड़े हैं यहा कई संसार । प्रयेक मे मेरे नियमों और मेरे रचना समुद्र का है प्रसार।। आखिर मेरा स्वामित्व है, मेरे इस मनके पर रखे सर्वभाग पर। फिर भी पता नहीं क्यों आखिर टूट जाता हूॅ, इस पराई दुनिया के हर एक प्रहार पर।। तब मेरे स्वयं के संसार पर नियंत्रण मेरा खो जाता है कहाॅ? मेरे द्वारा रचित ब्रह्माण्ड क्यों मुझे ही प्रतीत होता सबसे घटिया जंहाॅ।। यद्यपि जैसे-2 मिला मैं इस मानव रूपी हैवान से, इस सत्य रूपी भगवान से। मेरा मस्तक हिला, और हिला, ज्यादा हिला, समझ आया ये संसार अतिसुक्ष्म है मेरे स्वयं के अभिमान से।। व्यर्थ मे इनकी देखादेखी क्यों करे खराब हमारा व्यवहार। अरे! मुर्ख से उलझना नहीं कोइ बुद्विमता, इतना तो समझो यार।। चलो अब करलों उपर बाजुए कमीज़ की। आखि़र हमारे विचारों को ठेस पहुंचाए, हरगिस ख़ैर नहीं उस बद्तमिज की। दुनिया है खुबसुरत हमारी, इसको भी बना देंगे। अच्छा करेंगे, सच्चा करेंगे और कोई आया बीच मे ंतो उसको भी बता देंगे। अच्छे-सच्चे, रचनात्मक विचार रखेंगे।।

ईक्किश का हो रहा हूं मैं

ईक्किष का हो रहा हुॅ मैं इस पेचिदा जीवन की बिती बातों को आज घसीट मस्तिश्क में रहा हुॅ मैं। उन उत्सुक सुबहों की मायुस रातों के प्रष्न उलझ रहे हैं कहीं; विषाल अनुभवों के समीकरण कोई वजूद बना रहे हैं नहीं; ख़्यालों की इस गणना में आषा-निराषा उमड़ रहे हैं कई; निहार रहा इस सागर के मंथन में लहरे जो उग रही हैं नई; ये जटिलता संचारित हो रही क्योंकि... 20 गुजर गए उम्र के अब प्रवेष कर इक्किष मे रहा हूॅ मैं।। वो भी क्या दिन थे सुहाने, जब किषोर थे हम। वो उछलना-कुदना, वो हंसी-मजाक, क्याॅ गजब थी वो उदण्डता; वो उबलता खुन नया, वो मुठी मे दुनियाॅ, क्या साहस की वो प्रचण्डता; वो सपने, वो षायरी, वो गलतियाॅ, क्याॅ लाजवाब वो घमण्ड था; वो षिक्षा, वो संस्कार, वो आषाए, क्याॅ मनोबल वो अखण्ड था; वो ख्वाहिषों की नाव पर सवार, लापरवाह मस्ती के निचोड़ थे हम।। ये अठखेलियाॅ दिख रही प्रत्यक्ष क्योंकि... अब प्रवेष कर इक्किष मे रहा हूॅ मैं।।   फिर क्यों मेरी आत्मनिर्भरता आज निराषा में हो रही हैं औझल। क्यों ये गुमनामी का अंधेरा मुझे सता रहा; क्यों ये जालिम बार-बार मेरी हार मुझे बता रहा; क्यों फिर मैं खुद को ही नकारात्मक करता रह

सपनों के लिए जीवन में

सपनों के लिए जीवन में सपने तो बहुत देखे, देखेंगे जीवन में; लक्ष्य तो बहुत रखे, रखेंगे जीवन में; किन्तु फल मिले हैं और मिलेंगे आगे और भी, जिन्होने चाहत रखी सपनों के लिए जीवन मे। बहुत हैं अंधियारे इस धरती पर;  अनेकों हैं तकलिफें इस धरा पर; लेकिन पुंज प्रकाष का मिला उन्हीं को, दृढ़ता रखी जिसने अपने ईरादों पर। वह भी चाहता हैं, करना बहुत कुछ यौवन में; बाधाओं से भयभीत हो, लोट आते हैं कदम, अधर में; परन्तु विजय पताका फहराता हैं वहीं षुरमा, जिसने गंभीरता से कुछ तो सोचा होगा, सपनों के लिए जीवन मे। मैं भी सोचता हुॅ, क्यो ना सोचा जाए इस पर; कुछ दिवस पष्चात फुरसत में पुनः सोचता हुॅ इस पर; किसी समय सोचकर निश्कर्श निकाला, तो भूल गया कि सोच रहा था किस पर, परन्तु इस मुर्खता पर मेरे भाव न बदले हंसी मे; क्योंकि तब सिद्ध हो चुका था कि जो सोचना छोड़, मेहनत करते हैं; वहीं जिते हैं, सपनों के लिए जीवन में।

It's all about My Interest

        It's all about My Interest I sing those songs that connects with my life. I choose those rhymes that stucks into my heart. I rewind those moments that gets back my smile. why I am so happy thinks people when they tickled by me. why I am so simple asks relatives when they observe me why I am so thoughtful talkes friends when they got lectured by me. I love this nature cause it teaches a lots of lesson I love myself cause people loves my behavior I love a lot her cause she feltes me like I'm a special person.

NAYA SAVERA {Hindi Poem}

नया सवेरा क्याॅ लिखना चाहता है तु, आज लिख डाल। क्याॅ उड़ेलना चाहता है तु, आज उड़ेल डाल।। ये जो तेरे मन के भाव है, मत रोक। ये जो तेरे गगन पर निकले पांव है, मत टोक।। क्यों घिरा हुआ है तु, घोर अंधेरो में। क्यों बिखरा हुआ है तु, चिंता के फेरों में। पता है कि तु हार चुका है। उन रोशन सवेरो को भी तु नकार चुका है।। गुमनामी अब तुझे ज्यादा अच्छी लगने लगी। इसलिए, आंखे तेरी क्याॅ उंचाईयों के स्वाद भुलने लगी।। क्याॅ सूरज, अस्त के डर से रोशनी दुबारा लाता नहीं। क्याॅ पंछी, टूटने के डर से घोंसला फिर से बनाता नहीं।। शायद डर लगता है, कि फिर से ना  गिर ‌जांउ। बार-बार गिर के भी चढ़ते रहने का वो, चिंटी से साहस कैसे दिलवाउं। अरे! दिन तो चढ़ते-ढ़लते है, ये ही जीवन-चक्र है। हर रोज उजाला होता, आकाश में पंछी उड़ाने भरते हैं, ये भी निरंतर है।। खुशियों कि बारिशों में भीगना है तो, सिकुड़े क्यों हो, हाथ फैलाओ। अरे! लहराती फसल चाहते है तो, बैठे क्यों हो, बीज लगाओ।। आज ही शुरू कर तु, रूकना भूल डाल। क्याॅ उड़े

that beauty

                                                                                                                                                                                                   THAT BEAUTY.   I could see the heaven through your eyes Where the only bird of happiness flies alone and sad, I was wondering then you came and on every spark of your smile my heart dies. Oh! My goodness! What an endless beauty was that My way to think and even my rudeness went flat ummm that sweetness of her presence; was incredible like everything I loved; LADOO, JALEBI, ROSGULLA; on one plate. Sometimes I felt lonely, confused like my heart in a dark sea I want to cry scream loudly, need this confined place’s key So, think closed-eye that what I really want; might magic or money and then my heart felt softly; yes, I wants her always just beside me.