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दास्तान ए सफर "जिंदगी"2

जीवन की इस लहर में जीवन थोड़ा रुक सा गया है।
तना हुआ सीना और जो गर्व था, वो सर अब झुक सा गया है।
वो बीते पलों की ठंडक और अब हर एक पल की जलन; दोनों गरमा रही है।
तब कोई मुश्किल आते देख मुस्कुराते थे और अब हर एक मुस्कान वो, मुरझा रही है।

परंतु इस उथल-पुथल में भी अजब सा सन्नाटा है।
हालातों की इस मधुर हाला को लांघु कैसे, ये समझ ना आता है।
मेरी भाव-लता से रिसते आंसू को अब, बारिश भी ना छुपा पाएगी।
क्रूरता की बेड़ियां तोड़ लगता है मुझे आलिंगन करने, विपदा भी खुद को छुटा ले आएंगी।
आखिर इतना सह गया हूं, जिसकी गिनती कोई कर नहीं सकता।
क्योंकि टूट चुका हूं इतना कि, अब और गिरने को डर नहीं लगता।

जीवन की इस लहर में हां! जीवन थोड़ा रुक सा गया है।
तना हुआ सीना और जो गर्व था, वो सर झुक सा गया है।

लेकिन कुछ तो है इस समतल में, जहां से मैंने शुरुआत की थी।
आसमां अभी भी उतना ही रोचक लगे, देख जिसे मेरे पहले सपने ने उड़ान भरी थी।
पिछले प्रयासों ने तो अनुभव सिखा दिए हैं कई;
तो चढूंगा जोश से दुगने और अब ऊंचाई का भय है नहीं।
तब तो ऊंचाइयों को बस देखने की ललक थी।
लेकिन अब छूने नहीं, अब तो आसमां को बस छेदने की सनक ही।

तू रुका हुआ जीवन, झुका हुआ सर, वापस उठा सकता है।
पूर्णिमा हो या अमावस, भौर की किरण को अंधकार न डरा सकता है।

इस सामान्य भीड़ में, सामान्य जिंदगी में, असामान्य होने का अहसास भी कुछ और ही है।
कभी लगे बिखरा सा, कभी व्यवस्थित जैसे चला रही अय्यारी जो, हमें और संसार भी, कुछ और ही है।
लेकिन असामान्य लोगों में सामान्य बनने का ख्याल दिल से जाता नहीं।
घोड़ा जो दौड़ रहा ट्रेक पर; आखिर क्यों लांघ बाढ़, मैदानों की उड़ान सीने से लगाता नहीं।

मैं नहीं करता कभी आशा कोई चमत्कार की।
मैं तो करता अभिलाषा नईं बाधा नई ललकार की।
लगे ये कड़ी है स्वप्नों की मेरे, हालात-ए-दुश्मन नहीं।
बहाव ये है सफलता के मेरे, घर्षण नहीं।

इन आंखों ने आसमानों की चमक अभी धुंधलाई नहीं।
कसर भर बाकी है, अरमानों की खनक अभी गहराई नहीं।
करनी है तो बस, एक शुरुआत नई,,,
 एक शुरुआत नई,,,


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