Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2020

सलाह एक दोस्त कि

जब एक प्यारे दोस्त ने दूसरे दोस्त का बिखरा बिखरा सा हाल देखा तो उसकी नादानी पर गुस्सा आया क्या रे! क्यों है तू इतना दुखी एक प्यारे मित्र ने मेरे आज मुझसे कहा कोई नही है यार अपना मैने जब धीमी आवाज़ में कहा उसने मुझे डांटा कहा लग सकता हैं शायद तुझे बुरा प्लीज अपने जीने का नज़रिया बदलो जो ठूंस रखा है कचरा तुमने जरा उनको उगलो शायद तुम किसी को पाने के लिए मचल रहे हो तुम सोचो तो क्या लगेगा उसे अच्छा दुखी पाकर तुझे तेरे कारण कोई दुखी हो क्या अच्छा लगेगा सुनकर तुझे ना किसी को पाने की तड़प और ना ही किसी से खफा हूं मैं  शायद आप मुझे समझ नहीं पाए  मैने बोला उनको लोग नहीं सपने है मेरी समस्याएं दोस्त ने कहा माफ़ करना शायद में किसी को समझ ना पाउ पर जो वेदना है अंदर की वो सुनती हैं सबको तुम जताओ ना भले पर सिंकज माथे पे दिखती हैं हमको देखो सपने ये तो अच्छी आदत हम इंसानों की देखो मगर जरूरी नहीं के सारे सपने पूरे हो गर करो मेहनत-लगन तो ना लक्ष्य रहे अधूरे वो मिडिल क्लास वाले हर चीज को ही अपनी समझ लेते है ये कल्पना तो चलती है जीवन भर खुद को खुश करना क्यों भूलें मगर खुशकिस्मत हो भाई के तुम्हे खुद के लिए व

गांव की सैर

थोड़ा वक्त निकाल कर जिंदगी से, कभी आना तुम मेरे गांव गलियां भरी है यहां की संजीदगी से, महसूस होगा तुम्हें जब यहां रखोगे पांव वो शाम की गौधूलि बैला, वह मंद मंद महकती तारों की रैना चिड़िया सी चहकती भोर, और दोपहर का वह शांत शोर थोड़ा वक्त निकाल कर जिंदगी से, कभी आना तुम मेरे गांव . बरसे बरखा जब तो मिट्टी की खुशबू, खेतों में लहराते कीटों की जुस्तजू, दृश्य है ये शहरों की लालसा से बहुत दूर, रमणीय है यहां का कण-कण भरपूर थोड़ा वक्त निकाल कर जिंदगी से, कभी आना तुम मेरे गांव . मुझसे मगर मेरे घर का पता ना पूछना और क्या हुई मुझसे कोई खता, ये ना सोचना तुम तो उतरते ही बस से, मेरे दादाजी का नाम लेना एक बार यह गांव है, यहां घरों के बाहर नेम प्लेट नहीं होती मेरे यार थोड़ा वक्त निकालकर जिंदगी से, कभी आना तुम मेरे गांव . कोयल की कू-कू, मोर की सुंदरता ट्रैक्टर, फावड़ा, बटोड़ा, डेगची और चिमटा जैसे कल-कल बहती नदी में एक छोटी सी नाव हमारे यहां हर एक आवाज हर एक शब्द में सिमटे हैं अनेक भाव  थोड़ा वक्त निकाल कर जिंदगी से, कभी आना तो मेरे गांव।  

जब मिलेंगे तुमसे

अरसा हो गया है उन बातों को शायद तुम्हें तो याद भी ना हो पर तुम्हारा नाम ले तरसा है हर दिन मेरा मुलाकातों को अगर शक हो तो पूछ लेना उन रातों को नजारा सांझ का मिल रहे सूरज और जमीं जैसा था शायद मिलन उस क्षितिज पर भी ना हो मगर रंग वो गेरुआ, शांति अजब सी लेकर बैठा था गुम हो गया वो शोर जब आंखों ने मेरी आंखों को तेरी देखा था जब आएगी सुबह सुनहरी ये बाग तब खिलेंगे खुलके दिल की गहराई में दफन जहां एक सांस भी ना हो गुंजेगे किस्से पुराने तुम्हारी एक आवाज सुनके फिर भी पता है कुछ कह ना पाएंगे जब मिलेंगे तुमसे यों आज भी वह नदी सी बह रही है सीने में कहीं सब ने कहा नहीं मिलोगे पर जिक्र बिना तुम्हारे, मज़ा जीने में नहीं ठीक है भूल जाएंगे वो मुस्कान, महक, नाम...भावना से दूर रहेंगे कैसे फिर भी पता नहीं ये दिमाग है या दिल, बड़बड़ाता रहता है कि क्या कहेंगे... जब मिलेंगे तुमसे।

I negative

चला जाऊं मैं कहीं, जहां इतना अंधेरा ना हो निकल जाऊं मैं कहीं, जहां उजाला दिवारों में बंद ना हो दुनिया ये अब मेरे मतलब की नहीं रही सांसो से अब मेरी ये गफलत भी कर रही यों आसान नहीं है अब चलना मुश्किलों का भी मुश्किल है अब ढलना बस! अब मैं और नहीं भटक सकता मेरी खुशी पर मेरा कल नहीं खटक सकता मैं आंखें मूंदकर पड़ा हूं कहीं कोने में यूं टूट के गिर पड़ा हूं, दिन गुजरे कई रोने में अब तो नहीं रहा मज़ा बंदी हो चलने में लगे कई दिन बीत गए सजा को निकलने में ये बेस्वाद सा रस घुल गया है हवा में ऊब गए हैं चुन चुन के जीने में, सफर ये बीत रहा दर्द औ दवा में ये बेस्वाद सा रस घुल गया है हवा में।