विद्यासार
क्या होता है विद्या का सार
सिर्फ होता है क्या चाटना किताबें हजार
क्या एक महिने या साल में प्राप्त कर सकते हैं इसे;
कितनी गहराई कितनी चौडाई कितना है इसका प्रसार।
शायद होगा ये किसी मानव दिमाग को पढना
या स्वयं के विचारो अनुभवों को गढना
क्या ये नहीं हो सकता किसी देश की संस्कृति;
वरना ये होगा जरूर सफलता की प्रत्येक सिडी पर चढना।
कोई कहता कि ये बराबर है माता-पिता के प्रेम जितना
कहता कोई रहस्यमयी है आसमां हैं जितना
कोई कहता पूरे जीवन का लेखा जोखा है;
ओर कोई बताता इसे ब्रह़मांड हो छोटा जितना।
असमंझस मे मैं बेचारा सोचता हूॅ बार बार
सभी धर्मों को सुनना अच्छा बोलना मानव कल्याणकारी कर दे संसार
हमेषा ज्ञान ग्रहण करते रहना, व्रद्धों व प्रकृती की सेवा करना;
बच्चों को देना अच्छे संस्कार।
अरे! हा! असल मे यही तो है सम्पूर्ण विद्या का सार।।
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