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मेरा मन

मेरा मन

क्यों आज मेरा मन हो रहा है विचलित ?
क्याॅ ह्रदय जा रहा है कहीं होकर द्रवित ?
क्याॅ करू मन में है बड़ी घोर असमंझस ?
क्या सिर्फ मेरे साथ ही घटित हो रहा है यह मंझर ?

बस! कुछ कह नहीं सकता मन में प्रस्फुटित प्रश्नों के उत्तर में।
बस! सोचता हूॅ कैसे पार करू बाधाओं को, अटकलों या सूत्र में।
मैं पथिक तो चल रहा था इस मोहमाया में गुजर के।
कहीं इसके छिंटे मुझ पर ना गिरे, यही सोच-विचार के।

तभी मस्तक में आया एक अन्य विचार...
क्यों आज मेरा मन...
क्याॅ ह्रदय जा रहा है कहीं होकर द्रवित ?

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