चंचलता
मैं हुॅ ख़ामोश; पर मेरा ह्रदय बोल रहा।
दुनियाॅ है ये स्थिर; पर मेरा मन डोल रहा।
कुछ सोचता जो; वो मैं नहीं हूॅ कर रहा।
रास्ते पर पथरिलें; हूॅ मैं क्यों गिर रहा।
खुरदरापन ये षायद; जीवन में मैं स्वयं ही चुन रहा।
नुकिलें किनारों पर तभी तो; स्वपनों को मैं चला रहा।
समझता तो हूॅ ही; नादान तो नहीं मैं अब रहा।
फिर नाजाने क्यों यूहीं; व्यर्थ भटक मैं तब रहा।
उफ!उफ!उफ! चकरा गया दिमाग; जब बारे में स्वयं के हूॅ मैं सोच रहा।
हूॅ मैं समझदार या फिर; पूर्वजन्म में मुर्खों पर हो मेरा राज रहा।
सोचता हूॅ मैं; भूतकाल भयावता है, भविश्य भरमा रहा।
हे! ईष्वर! क्यों न तब; मैं वर्तमान में हो खुष लहरा रहा।
अरे! मैं हूॅ ख़ामोश;मेरा मन बोल रहा।
दुनियाॅ है ये स्थिर; पर मेरा ह्रदय डोल रहा।
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