दास्तन-ए-सफर ‘’ज़िंदगी‘‘
ये दर्द भरी आंखे जो मेरी झुकी सी है।
बाजुए भी ये ना जाने क्यों मेरी आज थकी सी है।
ह्रदय भी मेरा स्पन्दन कर रहा रूक-रूक कर;
ये जवानी की लहरे भी तो अब रूकी-रूकी सी हैं।।
समय मेरा चल रहा कठिन मैं सोचता हूॅ।
देखेंगे इसे भी जोष से कभी-कभी मैं हुंकारता हूॅ।
कंहा की मेने गड़बड़, कंहा मे चूक गया, पता है मुझे;
फिर भी मैं रोदन करता, बहाने बनाता के सपने टूटे मेरे क्यों; नहीं मैं जानता हूॅ।।
आज हार सा गया मैं जिंदगी की इस कषमकष में।
सोचता हूॅ, ना जाने क्यों फंस गया मैं इस सरकष में।
उतार-चढाव, सुःख-दुःख तो बस अठखेलियाॅ है जीवन की, पता है मुझे;
पर इन विचारों को षांत कर सकूं, वो महात्मा नहीं, मैं वो आम हूॅ,
जो खिंचता है खुद को हर रोज इस तरकष में।।
मज़ेदार है यह जीवन भी,
कभी हंसाता है कभी रुलाता।
जिस क्षण टुटा वह, था षोकमनाता,
उसी को आज पक्की नींव सफलता की बतलाता।
जिससे वह डरता हो, सोचते ही कंपन करता हो,
कल उन घावों को हंसकर ही दिखयेगा, पता है मुझे;
खुषनुमा उन बिती बातों को याद कर मुस्कराता,
अद्भूत है क्यों वह आंखों में फिर आंसु लाता।।
हाहाहा...गजब है ना यह जीवन!
दर्द भरी आंखे मेरी अब भी उजालों में भरी सी है।
थकी हुई बाजुए भी तो जोषीली सी है।
उन हारी सी हसरतों से कह दिया कहीं और जा बसे, ख़ता है मुझे;
बेवफा है फिर भी इस जिंदगी से एक दिल्लगी सी है।।
‘‘और जब प्यार किया तो डरना क्या‘‘
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