अग्निपथ... अग्निपथ... अग्निपथ कल रात को ये सोच रहा था मैं; के आखिर कैसा ये भ्रम हैं। हर बात को ऐसे निचोड रहा था मैं; के जीते-मरते सभी, पर नित्य वैसा ही क्रम है।। रोज ये धरती गोल घुमती, सुर्य भी वैसा ही गरम है; बस चिंता मे था कि इस सब में मेरा क्या वजुद है। टूटे सपने मेरे, टूटे अपने मेरे, गैरों का हंसना कैसा ये धरम है; बस देख रहा था वहां ऊपर के कोई जोडने को टूटा अरमां मेरा क्या मौजूद है।। इस भ्रम की लड़ाई में चाहतों का किला मेरा क्या नेस्तनाबूद है; शायद हार का अंदेशा मेरी आंखो से गीरी बुंद से ही है। तभी तो सन्नाटा इतना गहरा छाया और पुछ रहा हरदमके अब भी दिल मेरा क्या मजबूत है; असल में लड़ाई तो मेरी हां! खुद से ही हैं।। खोया प्यार, दूर होए यार, फिर भी जुड़ा हूँ उनसे, जरूर एक दिन मिलुंगा, ये मैं जानता हुॅ; होगा कठिन हल इस भ्रम का शायद पर मैं अब गणितज्ञ नहीं, ये मस्तमोला अब साहित्य पढता हैं । पढा है पिछली सदियों के लिजेंडस के बारे मे, वो क्या लडे थे, ना जीए थे, जीवन, जिसको भ्रम मैं मानता हुॅ; गणित के शिक्षक कहते थे, हल मत ढुंढो, समस्या को समझो... और पिछली सदी के महानुभवों को पढा है और आइना ...
Poem that describes different aspects of Life, like: struggle, Time, love, Confusion n Motivation. Trying to understand Life's Game.